बुगरासी। कस्बे के शिव मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराणरु में रुक्मिणी-श्रीकृष्ण विवाह की कथा सुनाई गई। कथा व्यास लक्ष्मी नारायण तिवारी ने कहा कि श्रीमद्भागवत पुराण में रुक्मिणी और भगवान श्रीकृष्ण के विवाह की कथा प्रेम, धैर्य और निष्ठा का अनुपम उदाहरण है। इस कथा में महारानी रुक्मिणी, जो विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं, ने बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति मान लिया था। उनकी सुंदरता और गुणों के कारण कई राजकुमार उनसे विवाह करना चाहते थे, विशेषकर शिशुपाल, जो रुक्मिणी के भाई रुक्मी की पसंद थे। रुक्मिणी को शिशुपाल से विवाह करने के लिए बाध्य किया जा रहा था, लेकिन उनका हृदय केवल श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित था।
कथा व्यास ने कहा कि रुक्मिणी ने एक पत्र भेजकर भगवान कृष्ण को अपनी भावनाएँ प्रकट कीं और उनसे आग्रह किया कि वे आकर उन्हें इस अनुचित विवाह से बचाएँ। भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी के प्रेम और भक्ति को स्वीकार किया और अपने प्रिय मित्र बलराम के साथ विदर्भ आए। विवाह समारोह के दिन, श्रीकृष्ण ने बहादुरी से रुक्मिणी का हरण किया और उन्हें अपने रथ पर बिठाकर द्वारका ले गए।
रुक्मी, जो शिशुपाल के पक्ष में था, ने उनका पीछा किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे युद्ध में पराजित किया। इसके बाद, श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ। यह विवाह भगवान की लीलाओं में से एक महान प्रसंग है, जो यह दर्शाता है कि सच्चा प्रेम और समर्पण सदा विजय प्राप्त करता है।
कथा से मिली सीख
इस कथा ने भक्तों को यह सिखाया कि जब प्रेम और भक्ति सच्चे हों, तो कोई भी शक्ति उसे रोक नहीं सकती। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह आध्यात्मिक प्रेम की अमर गाथा है, जो युगों-युगों तक भक्तों को प्रेरणा देती रहेगी।
ये रहे उपस्थित
मोहित सिंघल, राजू लोधी, आशु सोनी, नरेश जिंदल, अजय गर्ग, हर्ष सिंघल, अमित सिंघल, पवन मित्तल, अनिल मित्तल आदि सहित अनेक भक्त रहे।

Author: Abhishek Agarwal
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